________________
जयमाल - त्रिभंगी छन्द
जय चक्री वीरा, कामशरीरा, नाशत पीरा, जगजनकी । जय गणपतिनायक, होसुखदायक शोभालायक, छवि तनकी।। जय कुन्थु प्यारे, जग उजियारे, सबसुख धारे, अलखगती। जय शिवुरधरिये, आनंदभरिये, जल्दी करिये, विपुलमती॥ तोटक छन्द
जय सूर तनय तब मूरति मा, तप तेज तनी जनु पूरतिमा। जय शुक्र शतक्रतु सेव सदा, कुरु कुन्थु जिनाधिप कर्म अदा।। धरि काम सभी रति नाम तिमा । चित राखत ना कहुँ आरति मा जय शुक्र शतक्रतु सेव सदा, कुरु कुन्थु जिनाधिप कर्म अदा ।। षटखण्ड तनी तजि राज्य- रमा, निज - आतम-भूति करी करमा जय शुक्र शतक्रतु सेव सदा, कुरु कुन्थु जिनाधिप कर्म अदा ।।
मुष्टिक का तने सिरमा । घर त्याग वसे शिव मन्दिर मा ।। जय शुक्र शतक्रतु सेव सदा, कुरु कुन्थु जिनाधिप कर्म अदा धरि जीव उधारन की तकमा । जग जीत लियो यह कौतुक मा ।। जय शुक्र शतक्रतु सेव सदा, कुरु कुन्थु जिनाधिप कर्म अदा ।। करि शांति सुभाव हि जोर दमा । मन आतम घायक चोर दमा।। जय शुक्र शतक्रतु सेव सदा, कुरु कुन्थु जिनाधिप कर्म अदा ।। भट मोह अरी पर मारन मा। नहि चूक प्रभू तिहि मारन मा ।। जय शुक्र शतक्रतु सेव सदा, कुरु कुन्थु जिनाधिप कर्म अदा || दुखदा छल वोरि दियो नद मा । चिदरूप विराजित आनद मा ।।
जय शुक्र शतक्रतु सेव सदा, कुरु कुन्थु जिनाधिप कर्म अदा।। लहि ज्ञान दिवाकर लोक तमा। हनि होत भये प्रभु शुक्लतमा। जय शुक्र शतक्रतु सेव सदा, कुरु कुन्थु जिनाधिप कर्म अदा।। गृहत्याग रहे जन तो धरमा । तिनको न विक्रोध तनी घरमा ।। जय शुक्र शतक्रतु सेव सदा, कुरु कुन्थु जिनाधिप कर्म अदा ।। तुम पादन राज हिये कलिमा । धरि सूर कहावत सो कलिमा।।
356