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पंचकल्याणक - शिखरिणी छन्द
महा ऐरादेवी, कमल - नयनी चन्द्र- वदना, सुकेशी चम्पा -भा, वपु लख शची होत अदना ।
से जाके स्वामी, गर्भ सतमी भाद्र सितना, जजों मैं ले अध्यम्, नसत भव है पाप कितना।
ओं ह्रीं भाद्रपदशुक्लसप्तम्यां गर्भकल्याणकप्राप्ताय श्री शान्तिनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
वदी जाने जो चौ, दशि सुभग है जेठ महिना, जने माता भू पै, हूवो खलक को भाग दाहिना । महाशोभा भारी, शचिपति करी जन्म दिन की, करों पूजा मैं इहाँ, शुभ अरघ ले शान्ति जिनकी ।
ओं ह्रीं ज्येष्ठ कृष्णचतुर्दश्यां जन्मकल्याणकप्राप्ताय श्री शान्तिनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तिथी भूता नीकी, सुभग महिना जेठ बदि मा, तजी बाधा सारी, मगन हूवे साता उदधि मा।
तहां देवाधीशं, चरण-युग पूजे अघ हरे, यहाँ मैं ले पूजों, अरघ शुभ ते पाद सुधरे।
ओं ह्रीं ज्येष्ठकृष्णचतुर्दश्यां तपकल्याणकप्राप्ताय श्री शान्तिनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दशाख्या संख्या की, तिथि शुभ कही पौष शुक्ला, हने घाती चारों, जदिन धरके ध्यान शुक्ला। विराजे सो आछे, समवसृति में ईश जग के, जजों में ले अरघं, कलुष नशि जावें कुमग के
ओं ह्रीं पौषशुक्लैकादश्यां ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय श्री शान्तिनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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