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पिछाने भली-भांति सो आत्मभेवा । नमों जय हमें दीजिये पाद सेवा ।। न देखी कभी सो लखे मुक्तिवामा, तहां जाय के वेश पावे अरामा । विराजे तिहूँ लोक में जो मथेवा । नमों जय हमें दीजिये पाद-सेवा।।
नबावे तुम्हें लोक में माथ जेते, करें पादपूजा भलीभांति तेते। तिन्हों की सदा त्रास भव की कटेवा । नमों जय हमें दीजिये पाद-सेवा।। अतः देव तुभ्यं नमस्कार कीजे, बढ़ाई तिहूँ लोक में पाय लीजे। सर्व जन्म की कालिमा को मिटेवा । नमों जय हमें दीजिये पाद - सेवा ।।
महालोभरूपी घटा को हवा जू, बलीमान शुण्डाल कण्ठीरवा तू। न राखी कतौ दोष की जानि ठेवा । नमों जय हमें दीजिये पाद - सेवा ।। तृष्णा महामन को नहा तू, मिटवन्न को व्याधि एकै कहा तू । न दूजा 'कोऊ और तो सो कहेवा । नमों जय हमें दीजिये पाद - सेवा ।। नहीं शर्ण कोऊ बिना तुम हमारो, तिहूँ लोक में देखि ही देखि हारो । पायो प्रभू सो को शुद्ध लेवा | नमों जय हमें दीजिये पाद - सेवा ।। जगत काल को है चबेना बनाई, कछू गोद लीन्हें कछू ले चाई। हे पाद में जानि रक्षा कि टेवा । नमों जय हमें दीजिये पाद - सेवा ।।
भलो वा बुरा जो छु हो तिहारो, जगन्नाथ दे साथ मो पै निहारो।
बिना साथ तेरे न एकौ बनेवा । नमों जय हमें दीजिये पाद - सेवा || चले काम व्यारी झरे झूठ पानी, नवैया हमारी महा- बोझ यानी । करैया तुहीं नाथ मो पार खेवा, नमो जय हमें दीजिये पाद - सेवा ।।
घत्ता
की जयमाल |
मति माफिक हम करी महत यह, विमलनाथ प्रभु पढ़त सुनत मन वचन तन नीके, नशत दोष दुख ताके हाल सुमति बढ़त नित घटत कुमति मम, दुरत रहत दुश्मन जो काल भरम नाशि शुभ शर्म दिखावत, करम न पावत जाकी चाल ।। ओं ह्री श्री विमलनाथजिनेन्द्राय सर्वसुखप्राप्तये पूर्णार्घ्यम् ।
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