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________________ छांडि सयोग सुथान लियो सुअयोग कहो जिहिकी थित आनी, पंचहि ह्रस्व समय तिहि भूरि, कहे अवसान समय युगभानी। जानि पचासी अघातिय की, प्रकृतीतिनमें सुबहरिमानी, अन्त समय करि तेरह चूरन, सिद्ध भये पद पूजहु जानी। दोहा शुभ अषाढ़ कृष्णष्टमी, विमल भये मल-दूर। पूरि रहे शिवगण विषे, जजहुँ अरघ ले भूरि। ओं ह्रीं आषाढकृष्णाष्टम्यां मोक्षकल्याणकप्राप्ताय श्री विमलनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला - त्रिभंगीछन्द जय सुक्कृत वरमा, के शुभ घर मा, पूरन करमा, भे परमा, जयकरतसुघरमा, रहित अधरमा, रहित जगन्मा, पदतरमा। जौगुणतोतरमा, नहिंगणधरमा, वसतअकरमा शिवसरमा, आवो तजिशरमा जो तुअ घरमा फेरि न भरमा दरदरमा। भुजंगप्रयास छन्द गुणावास श्यामाभली जासुअम्बा, भये पुत्र जाके दिखाये अचम्भा। रहे जासु के द्वार पै देव देवा, नमों जय हमें दीजिये पाद-सेवा।। लखी चाल मैं नाथ तेरी अनूठी, बिना अस्त्रबांधे करे शत्रु मेठी। लई जय तिहूँ लोक में जीत एवा। नमों जय हमें दीजिये पाद-सेवा।। पड़ी कण्ठ में नाथ के मुक्तिमाला, विराजे सब एकही रूपशाला। सकाशास ते लगा देन जेवा, नमों जय हमें दीजिये पादसेवा।। लखे रूप तेरौ करे शुद्धताई, न लागे कभी ताहि कर्मादि काई। महाशान्तिता सौख्य ही में धरेवा। नमों जय हमें दीजिये पाद-सेवा।। प्रभूनाम रूपी दिया जीभ द्वारे, धरे वारि सो बाह्याभ्यन्तर निहारे। 333
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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