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अतिदीर्घ तन्दुल धवल छाले, पुंज साजें थार मे। घनचन्द्रलज्जित शरद ऋतुके, कुन्द सकुचे हार में।। प्रभु विमल पाप-पहार-तोड़न, वज्रदण्ड सुहावने।
पद जजों सिद्धिसमृद्धिदायक, सिद्धिनायक तो तने।। ओं ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
बहु अमलकमल अनूप अनुपम, सहसदल विकसे कहे।
सो धारि कर पर देखि शुभतर, भाकर वरते लये।। प्रभु विमल पाप-पहार-तोड़न, वज्रदण्ड सुहावने।
पद जजों सिद्धिसमृद्धिदायक, सिद्धिनायक तो तने।। ओं ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय कामवाणविनाशनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
शतछिद्र फेनी धवल चन्द्र, समान कान्ति धरे घनी। वर क्षीरमोदक शालि ओदन, मिले खंडा सोहनी।। प्रभु विमल पाप-पहार-तोड़न, वज्रदण्ड सुहावने।
पद जजों सिद्धिसमृद्धिदायक, सिद्धिनायक तो तने।। ओं ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मणिदीपदीप्त सुजोति दशदिश, लगे झोक न पौनकी। ना बुझत धरि कंचन रकैबी, कान्ति प्रसरत जौनकी।। प्रभु विमल पाप-पहार-तोड़न, वज्रदण्ड सुहावने।
पद जजों सिद्धिसमृद्धिदायक, सिद्धिनायक तो तने।। ओं ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
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