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जयमाला - त्रिभंगी छन्द
जय पद सर तेरे, तीक्षण टेरे, कहत घनेरे, गरभ हरी । जय तिन गति सूधी, धरत न मूंदी, बातन मूंदी, यह सुथरी ।। जय काल निसाने, देखत भाने, चूक न जाने, निज मनसों । जय होत तीरमो, हरतपीरमो, हियतुतीरमो, तनि निवसो । पद्धरि छन्द
जय विमलतनय तुअ पदसरोज । मन वच तन नमियत तिन्हें रोज || अब श्रेय करो श्रेयांस नाथ। मैं तुम्हें पाय हूवो सनाथ। मेरे नहिं एक और आस । चित रहत सतत तो चरण पास || अब श्रेय करो श्रेयांस नाथ। मैं तुम्हें पाय हूवो सनाथ। तुम राज्यमा सब त्याग दीन। आनन्दसहित वनवास की ।। अब श्रेय करो श्रेयांस नाथ। मैं तुम्हें पाय हूवो सनाथ। व्रत महा समिति पण गुपति तीन । इमि तेरह - विधि चरित्र लीन || अब श्रेय करो श्रेयांस नाथ। मैं तुम्हें पाय हूवो सनाथ। तप द्वादश अन्तर बाह्य भेद । युत तपत तपस्या नित अभेद ।। अब श्रेय करो श्रेयांस नाथ। मैं तुम्हें पाय हूवो सनाथ। उत्तम क्षम आदिक कहत धर्म । तिनके तुम धारक हो सुमर्म ।।
अब श्रेय करो श्रेयांस नाथ। मैं तुम्हें पाय हूवो सनाथ। द्वादश भावन भाई महान । अध्रुव आदिक ये भेद जान ।। अब श्रेय करो श्रेयांस नाथ। मैं तुम्हें पाय हूवो सनाथ। धारि तीन रतन उर में विशाल | है आप अजाची करत हाल। अब श्रेय करो श्रेयांस नाथ। मैं तुम्हें पाय हूवो सनाथ। संयम पन इन्द्री दमन रूप। धरि होत भये तिहुँ लोक - भूप।। अब श्रेय करो श्रेयांस नाथ। मैं तुम्हें पाय हूवो सनाथ। पर-कारज-कारी तुम दयाल । तो सम दूजो नहिं लोक-पाल।। अब श्रेय करो श्रेयांस नाथ। मैं तुम्हें पाय हूवो सनाथ । घट घट के अन्तर लीन देव । जन कहत विलक्षण सकल देव ||
अब श्रेय करो श्रेयांस नाथ। मैं तुम्हें पाय हूवो सनाथ। पग धरत होत तीरथ महान । सो परसत पावत अचल थान।।
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