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तन्दुल धवल प्रछाल मनोहर, मिष्ट अमी समतूला। चुने खंडवर्जित अतिदीरघ, लखे मिटत क्षुधशूला।।
चन्द्रप्रभ के पदनख ऊपर, कोटि चन्द्रदुति लाजे। ___ दरवित भावित भाव शुद्धकरि, जजों सप्तभय भाजे।। ओं ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।
वर मचकुन्द कुन्द कुन्दन के, पुष्प सम्हारि बनाये। नशत कामकी विथा चढ़ावत, पावत संख मन भाये।।
चन्द्रप्रभ के पदनख ऊपर, कोटि चन्द्रदुति लाजे।
दरवित भावित भाव शुद्धकरि, जजों सप्तभय भाजे।। ओं ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय कामवाणविनाशनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा ।
सूपकार कृत षट्-रसपूरित, व्यंजन नाना भांती। पुष्टि करत हर लेत क्षीनता, क्षुधारोग को घाती।। चन्द्रप्रभ के पदनख ऊपर, कोटि चन्द्रति लाजे।
दरवित भावित भाव शुद्धकरि, जजों सप्तभय भाजे।। ओं ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
निश्चल ज्योति महादीपक की प्रभु चरनन के तीरा। ल्याय धरो हित पाय आपनो, हतै न ताहि समीरा।।
चन्द्रप्रभ के पदनख ऊपर, कोटि चन्द्रति लाजे।
दरवित भावित भाव शुद्धकरि, जजों सप्तभय भाज।। ओं ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा ।
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