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प्रभु तुम हो अवलम्बन हस्त, निकास किसी भगवान उरस्त। भवाब्धि परे जिनको महाराज, बड़े प्रभू पद्म गरीबनवाज॥9॥ मानीनकि लखि के मनथम्भ, बनी न रहे कित कोउक दम्भ। प्रताप तिहार कहो सिरताज, बड़े प्रभू पद्म गरीबनवाज।।10। न होंठ न तालु लगें कहुँ रंच, धुनि निकले नहिं अक्षर संच। गणी परखें हरखें दुख त्याज, बड़े प्रभू पद्म गरीबनवाज।।11। तजी लक्ष्मी की सबै तुम आस, सुआय रही इकठी पद पास। पुनीतपने की सुपाय गनाज, बड़े प्रभू पद्म गरीबनवाज।।12। सुकीरत फैल रही चहुँ ओर, लजावहि चन्दहि कुन्दहि जोर। डराय मने मिथ्यातम भाज, बड़े प्रभू पद्म गरीबनवाज।।13।। पलोटत पाय सदा शिव-तीय, कथा कथनी दिविभामि तनीय। करो बश में मन चंचलबाज, बड़े प्रभू पद्म गरीबनवाज।।14।। न होय मुझे जबलग शिव-सिद्धि, लहों तबलों पद-भक्ति-समृद्धि। यही सुनि मो तनि लेहु अवाज, बड़े प्रभू पद्म गरीबनवाज।।15।।
घत्ता यह मुक्ति निशानी, सब जगजानी, आनददा, जयमाल पढ़े। सो होय अजाची, मनरंग सांची, फेर न जाचकपन पकड़े।। ओं ह्री श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय सर्वसुख प्राप्तये पूर्णार्घ्यम्।
पदमनाथ वर वीर, तुअ पायन परताप तें। जगप्राणिन की पीर, रहे न ओ भवभव तनी।।
ओं ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय नमः (इस मंत्र की जाप्य देना)
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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