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माघ सुदी द्वादसि को, जन्मे अखण्ड प्रताप धरि सूर। जग मिथ्यातम सारो, निज किरनन तें कियो दर।।
ओं ह्रीं माघशुक्लचतुर्दश्यां जन्मकल्याणकप्राप्ताय श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
माघ शुक्ल द्वादशि दिन, द्वादश भावन भाय प्रभू मनमें।
योगाभ्यास सम्हारा, तजि गृह जाय वसे वनमें।।
ओं ह्रीं माघशुक्लद्वादश्यां तपःकल्याणकप्राप्ताय श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
पौष सुदी भूतादीन, केवलपद लहि है महाज्ञानी।
चतुरानन मनभावन, जगपावन करत सुखखानी।। ___ओं ह्रीं पौषशुक्लचतुर्दश्यां ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय अयम् निर्वपामीति स्वाहा ।
वैशाख सुदी षष्ठी, ज्ञानावरणादि कर्म निरमुक्तं। सिद्धपती पद लीन्हों, सम्मत्तादि अष्ट गुणयुक्तं।।
ओं ह्रीं वैशाखशुक्लषष्ठयां मोक्षकल्याणकप्राप्ताय श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
अथ जयमाल - छन्द चौपैया स्वामी अभिनन्दन के अति सुन्दर, पद सरोजसम सोहें। है भौंरा भविजन तिन ऊपर लहि, आनद सुखिया होहें।। तनित पराग धरे तिनतर की सिर, पावन कर जग मोहे। ते निसिदौस वसो मेरे घट फिर, देखों मद अरि कोहे।।
छन्द सुग्विणी जब अभिनन्द संसार की आस ना। खूब कीन्हों तिहूं लोक में वासना। नेक हेरो हमारी तनै हालिमा। दूर हो जाय मो भाव की कालिमा।।
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