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दश अंगी धूपं, अति शुचि रूपं, ल्याय अनूपं भव बढ़े। धूपं दधि मांहीं, दहन कराहीं, दिग महकाहीं धूम कढ़े || सम्भवढिग ल्याऊँ, बहुगुण गाऊँ, चरन चढ़ाऊँ, हरष हिये । जासों शिव डेरा, करम निवेरा, होय सबेरा, आश किये।। ओं ह्रीं श्री सम्भवनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा ।
जातीफल एला फल ले केला, नारीकेला आदि घने । शुभगुण्ड पियाला, अवर रसाला, भरि भरि थाला कनक तने ।। सम्भवढिग ल्याऊँ, बहुगुण गाऊँ, चरन चढ़ाऊँ, हरष हिये। जासों शिव डेरा, करम निवेरा, होय सबेरा, आश किये ।। ओं ह्रीं श्री सम्भवनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा ।
सम्वर भद्रम्वर, शाली सितसर, सारंगप्रिय अरू विंजन ले। वसु सारंग खासा, धूप सुवासा, फल इम अरघ सुहावन ले।। सम्भवढिग ल्याऊँ, बहुगुण गाऊँ, चरन चढ़ाऊँ, हरष हिये।
जासों शिव डेरा, करम निवेरा, होय सबेरा, आश किये ।। ओं ह्रीं श्री सम्भवनाथजिनेन्द्राय अनध्य पद प्राप्तये अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
सकर छन्द
फाल्गुन सुसित पख अष्टमी, को गर्भ स्थिति नाथ । श्री आदि षट्कुलवासिनी, अरु रुचिकवासिनि साथ।।
करि प्रश्न उत्तर देत माता, सुगरभ तुव परताप। हम अरघ ल्याय सुपाद पूजत, हरो मो सिम पाप || अहीं फाल्गुनकृष्णाष्टम्यां गर्भकल्याणक प्राप्ताय श्री सम्भवनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
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