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दोहा
जेठ अमासव के दिना, गर्भ स्थित जगदीश। तास चरण को अध्य से, जजों नाय निज शीश। ओं ह्रीं ज्येष्ठकृष्णामावस्यायां गर्भकल्याणकप्राप्ताय श्री अजितनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
माघ सुदी दसमी दिना, महिमंडल पर जात।
अरघ लेय शुभ हाथ सों, पूजत पातक जात।। ओं ह्रीं माघकृष्णाएकादशम्यां जन्मकल्याणकप्राप्ताय श्री अजितनाथजिनेन्द्राय अयम् निर्वपामीति स्वाहा ।
माघ सुदी नवमी कही, ता दिन दीक्षा लेत। अजित प्रभू को अध्य ले, पूजों भाव-समेत।। ओं ह्रीं माघकृष्णनवम्यां तपः कल्याणकमण्डिताय श्री अजितनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
पौष सुदी एकादशी ता दिन केवल पाय। जगत पूज्य के चरनयुग, पूजों अध्य बनाय।।
ओं ह्रीं पौषशुक्लैकादश्यां ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय श्री अजितनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
चैत्र सुदी पांचे दिना, सम्मेद शिखर तें वीर। अव्यय पद प्रापत भये, मैं पूजों धर धीर।। ओं ह्रीं चैत्रशक्लपंचम्यां मोक्षकल्याणकप्राप्ताय श्री अजितनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
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