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नुति सिद्ध लौंच कच नगन धाय, धरि षष्ठम व्रत चिद्रूप लाय।6। तप द्वादश-द्वादश वर्ष ठान, चउघाति हने गहि खड्ग धयान। जय नन्त चतुष्टय लब्ध देव, वसु प्रातिहार्य अतिशय सुमेव।7।
जय भव्यनिकर भवसिन्धु तार, मैं प्रणमूं जुग-कर शीश धार। जय समर पिटप जारन हुताश, जय मोह-तिमर नाशन-प्रकाश।8।
जय दोष अठारा रहित देव, मुझ देहु सदा तुम चरण सेव। हूँ करूँ विनती जोरि हाथ, भव तारणतरण निहारि नाथ।9।
(घत्ता छन्द) श्रीवीर जि नेश्वर नमत सुरेश्वर, वसुविधि करि जुगपद चरचं।
बहु तूर बजावें गुणगण गावे, रामचन्द मन अति हरष।।1।। ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ।
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