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सुदी कुवार प्रतिपद हने, घाति-कर्म दुखदाय।
घाति कर्म केवल भये, जनँ चरण गुण गाय॥ ऊँ ह्रीं आश्विनशुक्ल-प्रतिपदि ज्ञानमंगल-मण्डिताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।4।
शुकल षाढ़ सप्तमि गये, शेष कर्म हनि मोख।
शिव-कल्याण सुरपति को, जनूं चरण गुण घोख।। ॐ ह्रीं आषाढ़शुक्ला-सप्तम्यां मोक्षमंगल-मण्डिताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
जयमाला (रोला छन्द) लखि अनित्य भव, तज्यौ राज तृणवत् तप धार्यो, करि बहु विधि उपवास सकल आगम विसतार्यो। ___ मुनि सुप्रतिष्ठित न[ भावना षोड्श भज्ञये, करि समाधि अहिमिन्द भये तीर्थंकर थाये।।1।।
(पद्धरी छंद) जय समुदविजै शिवदेवि माय, श्रीनेमि जिनेश्वर गर्भ आय। तिष्ठे कार्तिक बदि षष्ठि देव, गर्भहि कल्याण आये स्वयेव।1। हरिवंश-व्योम मधि सुष्ठु भान, सित श्रावण षष्ठी जनम थान।
सौरीपुरतें सुरमेरु लेय, जन्माभिषेक करि गुण भनेय।2। जयदेव महाबल धरन बाल, द्रह प्रचुर नीर मनु कुसुम माल। जय धीर-धुरधर मेरु श्रृंग, अति पावन लावनि सकल अंग।3। जय दोष-निराकृत धर्म-घोख, भवतारक सम्भव-करन मोख। जय मोहन मूरति सिष्ट पाल, पितृ-मात-पद्म रवि प्रातः काल।4।
बहु नृत्य ठानि पितु मातु देय, जय वृद्ध भये गिन राज हेय। सित श्रावण षष्ठी जन्तु पेखि, भयभीत भये भव विशेखि।5 तप धारि तज्यौ परिगह-पिशात, नुति सिद्धों को करि त्याग वाच। गहि खड्ग चऊ घातिया मार, लहि केवल सित प्रतिपद कुआर।6।
धनदेव रच्यौं समवादिसार, जिन अन्तरीक्ष करिकै विहार।
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