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मगसिर सुदी चउदशि विषै, जनमे सुरपति आया। करि सनपन सुर गिरि जजे, पूजे तूर बजाय ।। बुध हो, अर-जिन ध्यावौ भावसोंजी ॥ 6॥ आयु असी चउ-सहस की, तन कंचन धनु तीस। मुकट-बन्ध नरपति करें, सेवा सहस-बतीस बुध हो, अर-जिन ध्यावौ भावसोंजी ॥ 7 ॥ कछु कारण प्रभु पायकैं, भव-तन-भोग विनिन्दि। देव ऋषी सब आयकैं, बोधि चले पद वन्दि ||
हो, अध्याव भावसोंजी ॥ 8 ॥ मगसिर सुदी दशमी तजे, षट्खण्ड रतन-महान। छिनवैं सहस, तिया तजी अम्ब तलैं धारि ध्यान || बुध हो, अर-जिन ध्यावौ भावसोंजी ॥ 9॥ षष्ठम पूरौ करि चले गजपुर भोजन-काज । प्रभु के कर पर कर कर्यो, अपराजित महाराज। बुध हो, अर-जिन ध्यावौ भावसोंजी || 10 नवधा-भक्ति सुरां लखो, करी वृष्टि सुख पाय। साढा-द्वादश कोटि ही, मणि- सुवरण बरसाया। बुध हो, अर-जिन ध्यावौ भावसोंजी।। 11॥
षोडश वरष करे भले, उग्र उग्र तपसार । कातिक सुदी द्वादशि हने, घाति-करम दुखकार। बुध हो, अर-जिन ध्यावौ भावसोंजी ॥ 12।
केवलज्ञान उपायकैं, को धर्म भवतार | द्वादश-व्रत श्रवक तणे, दस-विधि वृष अनगार।। बुध हो, अर-जिन ध्यावौ भावसोंजी ॥ 13 ॥ चैत अमावश सब सुरां, आये चतुर- निकाय मोख-सुथानक पूजिकैं, ध्याये मंगल गाय।।
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