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वरदत्त निहारेजी, नमः तिष्ठ उचारेजी, पय-दान सुरां लखि पंचाश्चर्य करेजी।8। षोडष वर्ष ताइंजी, करि तप अधिकाईजी, आतम-लव ल्याय हने चउ-घातियाजी। केवल लहि ज्ञानीजी, त्रैलोक्य बखान्योजी, सित-तीज कल्यानौ चैत सुरां कियोजी।9।
सब आरज विहरेजी, भवि तारि घनेरीजी, सब आयु निवेरि सम्मेदाचल गयेजी। बैशाख सु प्रतिपदजी, अघाति करे रदजी, तब मोक्ष-महापद कुन्थुजिना गायेजी।10।
श्रीजिनवर स्वामीजी, गुणपूरण-धामीजी, करुणानिधि-नामी अरज सुनो करूँजी। भव-वास महा-वनजी, इसमें सुख ना छिनजी, बिन-कारण ये जन बैर करै डरूँजी।11।
तुम शरण-सहाईजी, बिन-कारण भाईजी, हो त्रिभुवन-राई शरणि तुहे गहूँजी। गुणगण सब थारेजी, रामचन्द उचारेजी, हरि बैर हमारे सौख्य सदा लहँजी।12।
(घत्ता छन्द) गुणगण-अविकारं, भवधि-तारं, कुन्थु जिनेवर के अमलं। सुर-नर-खग ध्यावे, शिवपद पावें, रामचन्द पद जजि कमल।1। ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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