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चैत शुकल तृतिया हने, घात करम लहि ज्ञान। कह्यो धर्म सुनि भवि तिरे जजहूँ ज्ञान कल्यान।। ॐ ह्रीं चैत्रशुक्ला-तृतीयायां ज्ञानमंगल-मंडिताय श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।4।
पडिवा सित वैशाख ही, सकल-कर्म हनि मोखि।
गये सम्मेदाचल थकी, जजूं चरण गुण-घोखि।। ऊँ ह्रीं वैशाखशुक्ला-प्रतिपदायां मोक्षमंगल-मंडिताय श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।5।
जयमाला (दोहा) जय कुन्थु जिनेश्वरजी, बन्दूँ परमेश्वरजी, सरवारथसिद्धि थकी, चय आइयेजी। श्रीमति-उर थायेजी, नृप-सूर्य सुहायेजी, बदि श्रावण दशमी मंगल गाइएजी।1। वारणपुर-थानाजी, हरि जन्म-कल्यानाजी, मिलि आए वैशाख शुकल परिवा सबैजी। सुरगिरि ले आयेजी, जल छीर सुल्यायेजी, अभिषेक सिंगार करी पूजा सबैजी।2। फिर पितु-ढिग ल्यायेजी, नचि तूर बजायेजी, लखि अंग नमाये मात-पिता सबैजी। तन-कंचन सोहैजी, रवि-कोटिक को है जी, धनु तुंग पैंतीस अजा-लच्छ फबैजी।3।
वय बाल बिहाईजी, नृप-पदी पाईजी, शुभ-चक्र इत्यादि भण्डार विर्षे भयेजी। षट्-खण्ड के भूपाजी, बलधार अनूपाजी, सुर संग मझारि इत्यादि सबै जयेजी।4।
नृप-शेखर धाराजी, सेवै पद साराजी, बत्तीस हजार तिया तिगुणी लहीजी। कछु कारण पायोजी, भव चंचल भायोजी, नवनिधि सिंगार विभौ विषवत् तजोजी।5। लौकान्तिक आयेजी, पद पुष्प चढायेजी, नुति कर थुति ठानि सम्बोधि घरां गयेजी। शिव का हरि कीनीजी, मिलि कांधै लीनीजी, वन जाय तिलक-तरु तलि ठयेजी।6। सिंगार उतारेजी, शिर-केश उपारेजी, नमः सिद्धि उचारि सुधातम ध्याइयोजी।
वैशाख उजारेजी, परिवा तप धारेजी, तबही मनज्ञान जिनेश्वर पाइयोजी।7। षष्ठम करि पूरोजी, भोजन-हित सूरोजी, पुर मन्दिर धीर लखत भूपा धरेजी।
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