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सुर-असुर, विद्याधर हरिहर, प्रतिहर, ब्रह्मा भ्रष्ट मदन की । सुरतरु के कुसुम-थकी पद पूजूँ, हरो समर इन दुख दीने।। जिनेश्वर आपन से चर, लखि पोषे षट् धरि करुणा । मैं काल-अनन्त अकाज गमायो, अब तारौ तुम पद- शरणा।। ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।
श्री
दोष अठारा यातैं होवैं, क्षुधा तृपति ना नित खातैं। सद-घेवर, मोदक पूजन ल्यायो, हरो वेदना-दुख यातैं।। श्री कुन्थु जिनेश्वर आपन से चर, लखि पोषे षट् धरि करुणा । मैं काल-अनन्त अकाज गमायो, अब तारौ तुम पद - शरणा।। ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। 5।
मोह-महातप छाय रह्यो मम, ज्ञान हर्यो अति दुख दीना । मणिदीप-उजारा तुम-ढिग धारा, स्वपर लखै तम है छीना।। श्री कुन्थु जिनेश्वर आपन से चर, लखि पोषे षट् धरि करुणा । मैं काल-अनन्त अकाज गमायो, अब तारौ तुम पद- शरणा।।
ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार- विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6।
कारागार इहै में मुझ, मूदि महा दुख विधि पारें । विधि-इन्धन जारन भरि धूपायन, अगर हुतासन-संग जारें।। श्री कुन्थु जिनेश्वर आपन से चर, लखि पोषे षट् धरि करुणा । मैं काल-अनन्त अकाज गमायो, अब तारौ तुम पद-शरणा।। ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। 7।
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