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श्रीशान्तिनाथ जिन-पूजा (रचयिता - श्री रामचन्द्र जी)
शांति जिनेश्वर नमूं तीर्थ वसु दुगुण ही, पंचमिचक्रि अनंग दुविध-षट् सुगुण ही। तृणवत् ऋद्धि सब छारि तप शिववरी,
आह्वानन विधि करूँ वार-त्रय उच्चरी।। ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
शैल हेम ने पतत वापिका शव्यौमही। रत्नभंग-धारि नीर शीत अंग सोमही।। रोग-शोक आधि-व्याधि पूजते नशाय हैं।
अनंत-सौख्यसार शांतिनाथ सेय पाय हैं।। ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।।
चन्दनादि कुंकुमादि गन्धसार ल्यावही।
भृग-वृन्द गूंज तै समीरसंग ध्यावही।। रोग-शोक आधि-व्याधि पूजते नशाय हैं।
अनंत-सौख्यसार शांतिनाथ सेय पाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
इन्दु कुंद हार तै अपार श्वेत साल ही। दुर्ति खंडकार पूंज धारिये विवाल ही।। रोग-शोक आधि-व्याधि पूजते नशाय हैं।
अनंत-सौख्यसार शांतिनाथ सेय पाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।।
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