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जयमाला दोहा बन्दं श्री जिन-धर्म के, पद-नख-मण्डन भान। ममता-रजनी-हरण-दिन, भदधि-तारण-जान।।
(चौपाई) सर्वारथसिधतें अहमिन्द्र, चयकर रतनापुरी गुणवृन्द। पिता भानु गुणवन्त अपार, मात सुव्रता गर्भ मझारि।1। आये सित तेरसि वैशाख, नये मुकट हरिधरि अभिलाख। चले सबै सुर जुत-परिवार, गर्भकल्याणक कीनौ सार।2। षट् नव मास थकी मणिविष्ट, वार-तीन दिन माहीं सुविष्ट। करी धनद, सुरि छप्पन पाय, सेवै माता को सुखदाय।3। जनम माघ सुदी तेरसि भयो, तीन-ज्ञान-जुत अचरत थयो। बाजे घण्ट सुमन की विष्ट, इन्द्र चले सब नुति करि इष्ट।4। माया-शिशु धरि शचि जिनन्द, प्रदच्छिन दीनी सानन्द। वासव नमि लीने हरषाय, चले मेरु पाण्डुक वन जाय।5। छीरोदधिलें जल शुभ लाय, सनपन करि भव-मंगल गाय। बाजे साढा-बारा-कोरि, जाति धुनै करि नृत्त बहोरि।6। पूजि पदाम्बुज पितु घरलाय, ताण्डव निरत कियो सुरराय। धर्मनाथ कहि निजथल गये, बाल-चन्द्रसम बढ़ते भये।7। तन कंचन धनु पन-चालीस, आयु वरष लख-दस की ईस। पांच लाख वर्ष कीनो राज, कछु कारण लखि धर्म-जिहाज।8।
तृणवत् त्याग्यो भावन भाय, देव ऋषि नय पूजे पाय। और सुरासुर-खग-अवनीस, सिविका ले थापे वन ईस।9।
कच-लोंचत उपज्यो मनज्ञान, षष्टम धरि तिष्टे भगवान। तेरसि माघ शुकल सुरराय कर्यो कल्याण-तप सुखदाय।10। __ वर्द्धमानपुर भोजन काज, गये दयो पय धर्म-जिहाज। कोटि अर्ध-द्वादश मणि-धार, भई वृष्टि धरसेनि अगार।11।
वरष एक तप दुर्धर धारि, पूनम पोष ध्यान परजारि।
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