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सुतत्त्व-प्रकाशन शासन शुद्ध, विवेक-विराग- बढ़ावन बुद्ध । दया-तरु-तर्पन मेघ महान्, कुनय - गिरि- गंजन वज्र - समान। 3। गर्भ रु जन्म महोत्सव माँहि, जगज्जन आनंदकंद लहाहिं । सुपूरब साठहि लच्छ जु आय, कुमार चतुर्थम अंश रमाय। 4। चवालिस लाख सुपूरब एव, निकंटक राज कियो जिनदेव । तजे कछु कारन पाय सु राज, धरे व्रत - संजम आतम-काज | 5 | सुरेन्द्र नरेन्द्र दियो पयदान, धरे वन में निज - आतम-ध्यान । किया चव घातिय कर्म विनाश, लयो तब केवलज्ञान प्रकाश | 6| भई समवसृत ठाट अपार, खिरै धुनि झेलहिं श्री गनधार । भने षट्द्रव्य-तने विसतार, चहूँ अनुयोग अनेक प्रकार। 7। कहें पुनि त्रेपन भाव-विशेष, उभै विधि हैं उपशम्य जु भेष। सुसम्यक्चारित्र भेद-स्वरूप, भये इमि छायक नौ सु अनूप | 8 | दृगौ बुधि सम्यक् चारित-दान, सुलाभ रु भोगुपभोग प्रमाण। सु
वीरज संजुत ए नव जान, अठार छयोपशम इम प्रमान | 9 | मति श्रुति औधि उभैविधि जान, मनः परजै चखु और प्रमान अचक्खु तथाविधि दान रु लाभ, सुभोगुपभोगरु वीरज-साभ।10।
व्रताव्रत संजम और सुधार, , धरे गुन सम्यक् चारित भार । भए वसु एक समापत येह, इकीश उदीक सुनो अब जेह। 11। चहुँगति चारि कषाय-तिवेद, छह लेश्या और अज्ञान विभेद । असंजम-भाव लखो इस माँहिं, असिद्धित और अतत्त कहाहिं । 12 ।
भये इकबीस सुनो अब और, सुभेदत्रियं पारिनामिक ठौर। सुजीवित भव्य और अभव्व, तिरेपन एम भने जिन सव्व । 13 । तिन्हो मँह केतक त्यागन जोग, कितेक गहेंतैं मिटैं भवरोग। कह्यो इन आदि लह्यो फिर मोख, अनंत गुनातम मंडित चोख।14। जजों तुम पाय जपौं गुनसार, प्रभु हमको भवसागर तार। गही शरनागत दीनदयाल, विलम्ब करो मत हे गुनमाल। 15।
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