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देवदारु कृष्ण सार चन्दनादि ल्यावही। दशांग धूप धूम्र-गन्ध भृगवृन्द धावही।। अनन्तनाथ-पाय-सेव मोख्य-सौख्य दाय है।
अनन्तकाल-श्रमज्वाल पूजते नसाय है।। ऊँ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7।
श्रीफलादि खारिकादि हेमथाल में भरे। सुष्ठ मिष्ट गन्धसार चक्खि नासिका हरे।। अनन्तनाथ-पाय-सेव मोख्य-सौख्य दाय है।
अनन्तकाल-श्रमज्वाल पूजते नसाय है।। ऊँ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
छप्पय सलिल शीत अति स्वच्छ मिष्ट चंदन मलयागर। तन्दुल सोम-समान पुष्प सुरतरु के ला वर॥ चरु-उत्तम अति मिष्ट पुष्ट रसना-मन-भावन।
मणि-दीपक तमहरण धूप कृष्णागर-पावन।। लहि फल उत्तम कनकथाल भरि, अरघ रामचन्द इम करे।
श्री अनन्तनाथ के चरण-जुग, वसुविधि अरचे शिव वरै।। ऊँ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक
(दोहा) पुष्पोत्तर” चय लियो, सूर्यादे उर आय। कार्तिक पडिवा कृष्ण ही, जजहूँ तूर बजाय।। ऊँ ह्रीं कार्तिककृष्णा-प्रतिपदायां गर्भमंगल-मंडिताय श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।।
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