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श्वेत इन्दु कुन्द हार खण्ड-ना अखित्त ही।
दुर्ति खण्डकार पुंज धारिये पवित्त ही।। अनन्तनाथ-पाय-सेव मोख्य-सौख्य दाय है।
अनन्तकाल-श्रमज्वाल पूजते नसाय है।। ऊँ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।3।
सुरोपुनीत पुष्पसार पंच-वर्ण ल्यावही। गन्ध-लुब्ध भृगवृन्द शब्द धारि आवही।। अनन्तनाथ-पाय-सेव मोख्य-सौख्य दाय है।
अनन्तकाल-श्रमज्वाल पूजते नसाय है।। ऊँ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।
मोदकादि घेवरादि मिष्ट स्वादसार ही। हेम-थाल धारि भव्य दुष्ट-भूख टारही।। अनन्तनाथ-पाय-सेव मोख्य-सौख्य दाय है।
अनन्तकाल-श्रमज्वाल पूजते नसाय है।। ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
रत्न-दीप तेज भान हेमपात्र धारिये। भवान्धकार दुःखभार मूल निवारिये।। अनन्तनाथ-पाय-सेव मोख्य-सौख्य दाय है।
अनन्तकाल-श्रमज्वाल पूजते नसाय है।। ऊँ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6।
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