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श्री विमलनाथ जिन-पूजा ( रचयिता - श्री रामचन्द्र जी )
रोला छन्द
परम-सरूपी व्रती विवेकी ज्ञानी ध्यानी ।
प्राणी -हित उपदेश देय मिथ्यात - जघानी ||
शिव-सुख भोगी विमल- पाय बन्दूं जुग करकें । आह्वानन विधि करूँ त्रिविध त्रयवार उचरिकें॥1॥
ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । (स्थापनम् ) ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
अष्टक
(द्रुतविलम्बित छन्द)
विमल-शीतल-सुजल सुधारया, जनम-मृत्यु- जरा छय-कारया। सकल-सौख्य विधानक नायकं, परिजजे विमलं चरणाब्जकं ।।
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। 1 ।
अगर कृष्ण कपूर सुकुंकुमा, ऋणित भृंग-घटावलि गन्धना । अखिल-दुःख भवादिक नासनं, परिजजे विमलं चरणाब्जकं ।।
ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। 2।
अछित उज्ज्वल खण्ड न तीक्षणं, लसत चन्द - समान मनोहरं । विगत-दुःख सुनाथ सुदायकं, परिजजे विमलं चरणाब्जकं ।।
ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। 3।
कलप वृक्ष-भवेन सुगन्धिना, कुसुम-चारु हरै चखि पावनं। प्रबल बाण मनोद्भव नाशनं, परिजजे विमलं चरणाब्जकं ।।
ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।
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