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सरस मोदक, घेवर, बावरं, लसत कांचन-पात्र चरूत्तम।
प्रचुर-रोग-क्षुधा-निरनाशनं, परिजजे श्रेयांस-पदाब्जकं।। ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
कनक-कांचन-पात्र सुदीपं, लसत ज्योति विवर्जित-धूम्रकं।
अखिल-मोह विध्वंसन-कारणं, परिजजे श्रेयांस-पदाब्जकं।। ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6।
अगर कृष्ण कपूर सुचन्दनं, सुरभितागत षट्पद-वृन्दकं।
निचय कर्म हुतासन जारनं, परिजजे श्रेयांस-पदाब्जकं।। ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।71
मधुर श्रीफल चारु इत्यादिकं, ललित गन्ध महारस अद्भुतं।
अतुल-सौख्य महाफलदायकं, परिजजे श्रेयांस-पदाब्जकं।। ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
सलिल गन्ध सु तन्दुल पुष्पकं, चरु सु दीप सु धूप फलौघकं।
परम-मुक्ति सुथान-प्रदायकं, परिजजे श्रेयांस-पदाब्जकं।। ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक (दोहा) पुष्पोत्तर” हरि चये, विमला-उर अवतार। षष्ठी जेठ असेतही, लयो जनँ अवतार।।1।।
ऊँ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णा-षष्ठ्या गर्भमंगल-मंडिताय श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
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