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शुभ मलय अगर सुगन्ध सौरभ-थकी अलि वहु आवहीं।
जिन-चरन आगे धूप खेये, कर्म वसु, जरि जावहीं।। श्री चन्द्रप्रभ दुतिचन्द को पद-कमल-नख-ससि लग रह्यो।
आतंकदाह निवारि मेरी, अरज सुन मैं दुख सह्यो।। ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।71
शुभ मोक्ष-मग अंतराय रोक्यो, मोहि निरबल जानिकै। जिन मोक्ष द्यो तव चरन पूँजू, फल मनोहर आनिकैं।। श्री चन्द्रप्रभ दुतिचन्द को पद-कमल-नख-ससि लग रह्यो।
आतंकदाह निवारि मेरी, अरज सुन मैं दुख सह्यो।। ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
जल गन्ध तन्दुल पुष्प चरु ले, दीप धूप फलौघही। कनथाल अर्घ बनाय शिव-सुख, रामचन्द्र लहै सही।। श्री चन्द्रप्रभ दुतिचन्द को पद-कमल-नख-ससि लग रह्यो।
आतंकदाह निवारि मेरी, अरज सुन मैं दुख सह्यो।। ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।9।
पंचकल्याणक
(दोहा) चैत असित पंचमि चये, वैजयन्त तें इन्द्र। उदर सुलछना अवतरे, जनँ त्रिविध गुणवृन्द।। ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्णा-पंचम्यां गर्भमंगल-मण्डिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।1।।
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