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श्री संभवनाथ पूजा (रचयिता - वृन्दावनदास)
(छन्द मदावलिप्तकपोल) जय संभव जिनचंद सदा हरिगन-चकोर-नुत। जयसेना जसु मातु जैति राजा जितारिसुत।। तजि ग्रीवक लिय जन्म नगर-श्रावस्ती आई।
सो भव-भंजन-हेत भगत पर होहु सहाई।1। ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् (आह्वाननम्)।
ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः (संस्थापनम्)। ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भवत भवत वषट् (सन्निधिकरणम्)।
अष्टक (छन्द चौबोला तथा अनेक रागों में गाया जाता है) मुनिमन-सम उज्जवल-जल लेकर, कनक-कटोरी में धारा।
जनम-जरा-मृतु नाशकरन कों, तुम पदतर ढारों धारा।। संभव-जिन के चरन-चरचतें, सब आकुलता मिट जावे।
निजि-निधि ज्ञान-दरश-सुख-वीरज, निराबाध भविजन पावे।। ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।।
तपत-दाहकों कंदन-चंदन मलयागिरि को घसि लायो। जगवंदन भौ-फंदन-खंदन, समरथ लखि शरनै आयौ ।। संभव-जिन के चरन-चरचतें, सब आकुलता मिट जावे।
निजि-निधि ज्ञान-दरश-सुख-वीरज, निराबाध भविजन पावे।। ॐ ह्रीं श्री संभवनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
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