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जै-जै निराभरण निरमोह, जै-जै निर आयुध निरकोह।।6।।
जय निरलोभ निराकृतमान, मय शिवपन्थ दिखावन भान। जय बिन कारण जग हितकार, पतित उधारण विरद निहार।।7।। ___ आयो शरणि तिहारी नाथ, इस भवतें डूबत गहि हाथ। काढि-काढि करि विलम न देव, सही विरद तुम तारण देव।।8।।
(दोहा) हनि अघाति सम्मेदतें, फाल्गुन सप्तमि स्याम। जिन सुपास शिवकू गये, नमों जोरि कर राम।।1। ऊँ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय मर्हायँ निर्वपामति स्वाहा।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ।
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