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तुम कारण बिन जगबन्धु देव, इह प्रचुर भवार्णव को न छेव।9।
(घत्ता) कार्तिक तिथि कारी, तेरसि तपधारी, चैत पुनम प्रभु ज्ञानवरं। सुर-नर-खग आये, गुणगण गाये, रामचन्द नमि ध्यान करं।। ऊँ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय महायँ निर्वपामीति स्वाहा।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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