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शशि सुधासम मोदक मोदनं, प्रबल दुष्ट छुधामद खोदनं।। तु हौं नमिके गुण गायके, जुग-पदांबुज प्रीति लगायके ।। ऊँ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। 5।
शुचि घृताश्रित दीपक जोइया, असम मोह-महातम खोइया ।। जजतु हौं नमिके गुण गायके, जुग-पदांबुज प्रीति लगायके ।। ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। 61
अमरजिह्व-विषे दशगंध को, दहत दाहत कर्म के बंधको जजतु हौं नमिके गुण गायके, जुग-पदांबुज प्रीति लगायके।। ऊँ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7।
फलसुपक्व मनोहर पावने, सकल विघ्न समूह नशावने ।। तु हौं नमिके गुण गायके, जुग-पदांबुज प्रीति लगायके ।। ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। 8 ।
जल - फलादि मिलाय मनोहरं, अरघ धरत ही भवभयहरं । । जौं नमिके गुण गायके, जुग - पदांबुज प्रीति लगायके ।। ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अनघ्यपद-प्राप्तये अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक
गरभागम-मंगलचारा, जुग आश्विन श्याम उदारा। हरि हर्ष जजे पितुमाता, हम पूजें त्रिभुवन त्राता ॐ ह्रीं आश्विन कृष्णा-द्वितीयायां गर्भमंगल-प्राप्ताय श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 1 ।
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