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(घत्तानंद) जय गुनगनधारी, शिवहितकारी, शुद्धबुद्ध चिद्रूपपती।
परमानंददायक, दास सहायक, मुनिसुव्रत जयवंत जती।16। ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
दोहा
श्रीमुनिसुव्रत के चरन, जो पूजें अभिनन्द। सो सुर-नर सुख भोगिकें, पा सहजानन्द।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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