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नित मंगलवृन्द वधायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत - दायक हैं। 3 । गरभादिक मंगलसार धरे, जगजीवन के दुखदंदहरे। सब तत्त्व-प्रकाशन नायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत - दायक हैं। 4। शिवमारग-मण्डन तत्त्व कह्यो, गुनसार जगत्रय शर्म लह्यो। रुज रागरु दोष मिटायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत - दायक हैं। 51 समवसृतमें सुनार सही, गुनगावत नावत भालमही। अरु नाचत भक्ति बढ़ायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत-दायक हैं। 61
नूपुरकी धुनि होत भनं, झननं झननं झननं झननं। सुरलेत अनेक रमायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत-दायक है।7। घननं घननं घन घंट बजैं, तननं तननं तनतान सजे । दृमदृग मिरदंग बजायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत - दायक हैं। 8 । छिन में लघु और छिन थूल बनें, जुत हाव-विभाव विलासपने। मुखतें पुनि यों गुनगायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत-दायक हैं।9।
धृगतां धृगतां पग पावत हैं, सननं सननं सु नचावत हैं। अति आनन्द को पुनि पायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत-दायक हैं। 10 अपने भवको फल लेत सही, शुभ भावनि तैं सब पाप दही। तित तैं सुख को सब पायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत - दायक हैं। 11। इन आदि समाज अनेक तहाँ, कहि कौन सके ज विभेद यहाँ। धनि श्री जिनचन्द सुधायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत-दायक है।12। पुनि देश विहार कियो जिन ने, वृष- अमृतवृष्टि कियो तुमने। हमको तुमरी शरनायक है, मुनसुव्रत सुव्रत-दायक है।।13। हम पै करुनाकरि देव अबै, शिवराज-समाज सु देहु सबै । जिमि होहुँ सुखाश्रम-नायक हैं, मुनसुव्रत सुव्रत-दायक है।।14।। भवि वृन्दतनी विनती जु यही, मुझ देहु अभयपद-राज सही । हम आनि गही शरनायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत-दायक हैं। 15।
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