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________________ उमास्वामि श्रावकाचार - परीक्षा आसन्नभव्यताकर्महानिसंज्ञित्वशुद्धपरिणामाः । सम्यक्त्वहेतुरन्तर्बाह्याप्युपदेशकादिश्व ||२३|| संवेगो निर्वेदो निन्दा गर्दा तथोपशमभक्तो । वात्सल्यं त्वनुकम्पा चाष्टगुणाः सन्ति सम्यक्त्वे ||७८|| I इन तीनों पद्यों से पहला पद्य मनुस्मृतिके पांचवें अध्यायका ४८ पद्य है । योगशास्त्र में श्रीहेमचन्द्राचार्य ने इसे तीसरे प्रकाशमें उद्धृत किया है और मनुका लिखा है। इसीलिये या तो यह पद्य सीधा 'मनुस्मृति' से लिया गया है या अन्य पद्योंके समान योगशास्त्र से ही उठाकर रक्खा गया है । दूसरा पद्य यशस्तिलकके छठे आश्वासमें और धर्मसंग्रहश्रावका - चारके चौथे अधिकारमें 'उक्तं च ' रूपसे लिखा है । यह किसी दूसरे ग्रन्थका पत्र है -- इसकी टकसाल भी अलग है— इसलिए ग्रन्थकर्त्ता ने या तो इसे सीधा उस दूसरे ग्रन्थसे ही उठाकर रक्खा है और या उक्त दोनों ग्रन्थोंमेंसे किसी ग्रंथसे लिया है। तीसरा पद्य 'वसुनन्दिश्रावकाचार' की निम्नलिखित प्राकृत गाथाकी संस्कृत छाया है: : "संवे oिdi गिंदा गरुहा य उवसमो भत्ती । वच्छल्लं अणुकंपा अट्ठगुणा हुंति सम्मत्ते ॥४६॥ ११ इस गाथाका उल्लेख 'पंचाध्यायी' में भी, पृष्ठ १३३ पर, 'उक्तं च' रूपसे पाया जाता है। इसलिए यह तीसरा पद्य या तो वसुनन्दिश्रावकाचारको टीकासे लिया गया है, या इस गाथापरसे उल्था किया गया है । (२) परिवर्तित पद्य अब, उदाहरण के तौरपर, कुछ परिवर्तित पद्य, उन पद्योंके साथ जिनको परिवर्तन करके वे बनाये गये मालूम होते हैं, नीचे प्रगट किये जाते हैं । इन्हें देखकर परिवर्तनादिकका अच्छा अनुभव हो सकता है । इन पद्योंका परस्पर शब्दसौष्ठव और अर्थगौरवादि सभी विषय विद्वानोंके ध्यान देने योग्य हैं। --
SR No.009242
Book TitleUmaswami Shravakachar Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1944
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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