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[ ७४ ] सृष्टि करते, उसे अपनाते, उसकी प्रशंसा करते और उसका प्रचार करते हैं उनका हृदय ज़रूर काला है भले ही वे ऊपरसे कितनेही साफ़ सुथरे तथा शान्त दिखलाई पड़ते हों, और इसीलिये उन्हें जैनधर्म तथा जैनसमाजका हितशत्रु समझना चाहिये। कुछ विलक्षण और विरुद्ध बातें गह 'सूर्यप्रकाश' प्रन्थ, जिसका जालोपन और बेढंगा
पन-ऊपर अनेक प्रमाणोंके आधार पर भले प्रकार दिनकर-प्रकाशकी तरह स्पष्ट सिद्ध किया जा चुका है,
औरभी बहुतसी ऐसी विलक्षण तथा विरुद्ध बातोंसे भरा हुआ है जिनका भगवान् महावोरके सत्य शासन अथवा उनके उपदेशके साथ प्रायः कोई मेल नहीं है-प्रत्युत इसके, जो उसको प्रकृतिके विरुद्ध तथा गौरवको घटाने वाली हैं और साथहो ग्रंथको औरभी ज़्यादा अप्रामाणिक, अमान्य, अश्रद्धेय एवं त्याज्य ठहरानेके लिये पर्याप्त हैं। नोचे एसीही कुछ बातोंका नमूने के तौर पर दिग्दर्शन कगया जाता है। इससे पाठकों पर ग्रंथकी असलियत और भी अच्छी तरहसे खुल जायगी और उन्हें प्रथकारके हृदय, श्रद्धान, तत्वज्ञान एवं कपटाचरणका और भी कितनाही पता चल जायगा:१ सब पापोंसे छूटने का सस्ता उपाय!
टूढियों पर गालियोंकी वर्षा के अनन्तर-पूर्वोल्लेखित श्लोक नं० १२२ के बाद ही-ग्रंथमें एक व्रतप्रकरण दिया गया है, जिसका प्रारम्भ "पुनराह शृणु भूप! तेषां भाविसुखाप्तये" इन शब्दोंसे होता है, और उसके द्वारा भगवान् महावीरने पंचमकालके मानवोंको सुखप्राप्तिके लिये राजा श्रेणिकको