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विद्वानों की कुछ सम्मतियां
(१) त्यागमूर्ति बाबा भागीरथजी वर्णी
"संसारमें जितने अनर्थ होते हैं वे केवल स्वार्थ सिद्धि पर निर्भर हैं । इस ग्रन्थका नाम 'सूर्यप्रकाश' है यदि 'घोर मिथ्यात्व प्रकाश' रहता तो अच्छा होता; क्योंकि इसमें श्री महावीर स्वामीका घोर अवर्णवाद किया गया है ।"
(२) न्यायालंकार पं० वंशीधरजी सिद्धान्तशास्त्री, इन्दौर
"आपकी जो अति पैनी बुद्धि सचमुच सूर्यके प्रकाशका भी विश्लेषण कर उसके अंतर्वर्ति तवोंके निरूपण करने में कुशल है उसके द्वारा यदि नामत: सूर्यप्रकाशकी समीक्षा की गई है तो उसमेंका कोई भी तत्व गुह्य नहीं रह सकता है । अनुवादकके हृदयका भी सच्चा फ़ोटू आपने प्रगट कर दिखाया है। आपकी यह परीक्षा तथा पूर्वलिखित ग्रंथपरीक्षाएं बड़ी कामको चीज़ें होंगी ।"
(३) पं० परमेष्ठोदासजी, न्यायतीर्थ, सुरत
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'सूर्य प्रकाश-परीक्षा' के लेख मैने अक्षरशः पढ़े हैं । उनकी तारीफ़ मै तो क्या करू, मगर विरोधी जीवभी बेचैन होजाते होंगे ! परन्तु वे क्या करें ? हठका भूत जो उनपर सवार है !!"
(४) रायबहादुर साहु जगमन्दरदासजी, नजीबाबाद -
" चर्चासागर के बड़े भाई 'सूर्यप्रकाश' ग्रन्थकी परीक्षा देखकर तो मेरे शरीरके रोंगटे खड़े हो गये !· पूज्य पं० टोडरमलजी आदि कुछ समर्थ विद्वानोंके प्रयत्न से यह भट्टारकीय साहित्य बहुत कुछ लुप्तप्राय हो गया था परन्तु दुःखका विषय है कि अब कुछ महारकानुयायी पंडितोंने उसका फिरसे उद्धार करनेका वीडा उठाया है । अत: समाजको अपने पवित्र साहित्यकी रक्षा के लिये बहुत ही सतर्कता के साथ सावधान हो जाना चाहिये और ऐसे दूषित ग्रंथों का ज़ोरोंके साथ बहिष्कार करना चाहिये, तभी हम अपने पवित्र धर्म और पूज्य आचार्यों की कीर्तिको सुरक्षित रख सकेंगे ।"
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