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[ ३ ] जिन्होंने मेरो ग्रंथ-परीक्षाओं तथा दूसरी विवेचनात्मक पुस्तकोंको पहले से नहीं देखा था उन विद्वानों में से एक प्रसिद्ध न्यायतीर्थ जी हाल में ग्रंथ परीक्षा के तृतीय भाग (सोमसेन त्रिवर्णाचार की परीक्षा) और "विवाह क्षेत्र प्रकाश" को पढ़कर, अपने १६ नवम्बर के पत्र में लिखते हैं कि
“आपकी इन पुस्तकों को पढ़कर बड़ा हो आनन्द आता है। यह सब पुस्तके विद्यार्थी जीवन में हो पढ़ लेना चाहिये थी, मगर दुःख का विषय है कि उन पांजरापोलों या काँजी हाउसों ( कानी भौतों) में विद्यार्थियों को ऐसे साहित्य का भान भी नहीं कराया जाताहै। मेरी प्रबल इच्छा है कि आपकी
और प्रेमी जी की तमाम रचनायें पढ़जाऊँ । क्या आप नाम लिखने की कृपा करेगे ?..............."खेद है कि सामाजिक संस्थाओं में हम लोग इन ज्ञानव्यापक बनानेवाली पुस्तकों से बिलकुल अपरिचित रक्खे जाते है। इसी लिये विद्यार्थी ढब्बू निकलते हैं।" ___इसी तरह पर दूसरे विद्वान भी, चर्चा के इस वातावरण में, अपने लेखादिकों के द्वारा उन ग्रन्थ परोक्षाओं का अभिनन्दन कर रहे हैं, तथा आर्य-समाज के साथ के शास्त्रार्थों तक में कुछ जैन पंडितों को यह घोषित कर देना पड़ा है कि हम इन त्रिवर्णाचार जैसे ग्रन्थों को प्रमाण नहीं मानते हैं। कुछ विद्वानों ने तो जिनमें दो न्यायतीर्थ भी शामिल हैं-चर्चा सागर की भी साङ्गोपांग परीक्षा कर देने की मुझे प्रेरणा की है और यह सब उन परीक्षा लेखों की सफलता को लिये हुए भावी का एक अच्छा शुभलक्षण जान पड़ता है । अतः मेरे लिये एक प्रकार से आनन्द का ही विषय है, और मुझे मन्थपरीक्षा का जो राजमार्ग खुला है उसपर बहुतों को चलते