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________________ [ ९३ j गये हैं जो जिनबिम्बका - जिनेन्द्रको मूर्तिका - दर्शन करके भोजन करते हैं। जो लोग जिनबिम्बका दर्शन किये बिना भोजन कर लेते हैं उन्हें 'पशुतुल्य' समझना चाहिये । 1 आगमकी इस व्यवस्था के अनुसार - (१) वे सब निग्रंथ जैनमुनि पशुतुल्य ठहरते हैं जिनके जिनबिम्बके दर्शनपूर्वक भोजनका तो क्या, जिनबिम्बके दर्शनका भी कोई नियम नहीं होता -- वैसे ही चर्यादिकको जाते समय यदि कोई जैन मन्दिर अचानक रास्ते में आ जाता है तो वे दर्शन कर लेते हैं अन्यथा नहीं ! (२) वे सब सज्जन भी पशुओंको कोटिमें आते हैं जो अप यहांने जैनमन्दिरके न होने या सफ़र में रहने आदि किसी कारण वश बिना जिनबिम्बका दर्शन किये ही भोजन कर लेते हैं अथवा कुछ खा-पोकर दर्शन करते हैं- भलेही वे कैसे हो सभ्य, शिष्ट, धर्मात्मा एवं मनुष्योचित कार्योंके करने वाले क्यों न हों ! (३) सारे अजैनजन भी पशुतुल्य क़रार पाते हैं, जिनमें बड़े बड़े सन्तमहन्त, सत्पुरुष त्यागमूर्ति, परोपकारी, पूज्य देशनेता और गाँधीजी जैसे महात्मा भी शामिल हैं ! क्योंकि वे लोग बिना जिनबिम्बका दर्शन किये हो भोजन किया करते हैं !! (४) उन सब दुष्टों, धूर्तो तथा पापात्माओं को भो मनुष्यत्वका सर्टिफिकेट मिल जाता है जो किसी तरह भोजन से पहले जिनबिम्बका दर्शन तो कर लेते हैं परन्तु अन्य प्रकार से जिनके पास धर्माचार या विवेक जैसी कोई वस्तु नहीं होती और जो मनुष्य हत्याएँ तक कर डालते हैं ! मालूम नहीं यह कौनसे आगमका अद्भुत विधान है ! जैनागमका तो ऐसा कोई विधान है नहीं और न हो सकता I है । संभवतः यह ग्रंथकारके उस कलुषित हृदयागमका हो विधान जान पड़ता है जो ढूंढिया भाइयों पर गालियोंकी वर्षा करते समय उसके सामने खुला हुआ था ।
SR No.009241
Book TitleSuryapraksh Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1934
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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