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वीतराग से प्रार्थना क्यो ?
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आया और आकर कहने लगा-- -- "तुम्हारी इस छत्रोका मै बहुत आभारी हूँ, इसने मुझे मेरी भूली हुई छत्रीकी याद दिलाई है।' यहाँ छनी एक जडवस्तु है, उसमे बोलनेकी शक्ति नहीं, वह कुछ बोली भी नहो और न उसने बुद्धिपूर्वक छत्री भूलने की वह बात ही सुकाई है फिर भी चूंकि उसके निमित्तमे भूलो हुई छत्रीकी स्मृतियादिरूप यह सब कार्य हुआ है इसीसे अलकृत भाषामे इसका आभार माना गया है 1
( ४ ) एक मनुष्य किसी रूपवती स्त्रीको देखते ही उस पर आसक्त होगया, तरह-तरह की कल्पनाएँ करके दीवाना बन गया और कहने लगा- 'उस स्त्रीने मेरा मन हर लिया, मेरा चित्त चुरा लिया, मेरे ऊपर जादू कर दिया | मुझे पागल बना दिया। चव मै बेकार है और मुझसे उसके बिना कुछ भी करते - धरते नहीं बनता । परन्तु उस बेचारी स्त्रीको इसकी कुछ भी खवर नही- किसी बात का पता तक नही और न उसने उस पुरुषके प्रति बुद्धिपूर्वक कोई कार्य ही किया है— उस पुरुषने ही कहीं ना हुए उसे देख लिया है, फिर भी उस स्त्रीके निमित्तको पाकर उस मनुष्य के आत्म-दोपोको उत्तेजना मिली और उसकी यह सब
हुई। इससे वह उसका सारा दोष उस स्त्रीक मत्थे मढ़ रहा है, जब कि वह उसमें अज्ञातभावसे एक छोटासा निमित्तकारण बनी है, बड़ा कारण तो उस मनुष्यका ही आत्मदीप था ।
(५) एक दुखित और पीड़ित गरीब मनुष्य एक सन्तके पाश्रयमे चला गया ओर वडे भक्ति-भाव के साथ उस सन्तकी सेवा-शुश्रूषा करने लगा | वह सन्न संसार-र-भोगो विरक्त है— वैरागसम्पन्न है— किसीसे कुछ बोलना या कहता नहींसदा मौनसे रहता है । उस मनुष्यकी पूर्व मक्तिको देकर पिछले भक्त लोग सब ग रह गये । अनी भक्तिका उसकी भक्ति के आगे नगण्य गिनने लगे और बड़े आदर सत्कार के साथ
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