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समाज-संगठन
ग़रीबोंकी कोई मदद नहीं करते, उन्हें न्याय-भिक्षा' दिलाने में समर्थ नहीं होते। और इस तरह बेचारे पारवारिक और सामाजिक शक्ति, विहानोंको रातदिन चुपचाप घोर संकट और दुःख सहन करने पड़ते हैं। संसारमें अविवेक और स्वार्थको मात्रा इतनी बढ़ी हुई है कि उसके आगे पापका भय कोई चीज़ नहीं है। पापके भयसे बहुत ही कम अपराधोंकी रोक होती है। ऐसे बहुत ही कम लोग निकलेंगे जो पापके भयसे अपगध न करते हो । जो हैं उन्हे सच्चे धर्मात्मा समझना चाहिए। बाको अधिकांश लोग ऐसे ही मिलेंगे जो लोकभयसे, राज्यभयसे या परशक्तिके भयसे पापाचरण करते हुए डरते हैं। अन्यथा, उन्हें पापसे कोई घृणा नहीं है, वे सब जब मौका मिलता है तब ही उसे कर बैठते हैं। ऐसी हालतमें समूह बनाकर रहने की बहुत ही जरूरत है। समूहमें बहुत बड़ी शक्ति होती है। छोटे छोटे तिनकों और कच्चे सूतके धागोंका कुछ भी बल नहीं है, उन्हें हर कोई तोड़मरोड़ सकता है । परन्तु जब वे मिलकर एक मोटे रस्सेका रूप धारण कर लेते हैं तब बड़े बड़े मस्त हाथी भी उनसे बांधे जा सकते हैं। चींटियां आकारमें कितनी छोटी छोटी होती हैं परन्तु वे अपनी समूह शक्ति से एक सांपको मार लेती है। जिनको समूह शक्ति बढ़ी हुई होतो है उनपर एकाएक कोई आक्रमण नहीं कर सकता, हराएकको उनपर अत्याचार करने या उनके स्वार्थमें बाधा डालनेका माहस नहीं होता, उनके स्वत्वों और अधिकारों को बहुत कुछ रक्षा होतो है। विपरीत इसके, जिनमें समूहशक्ति नहीं होती वे निर्बल कहलाते हैं और निर्बलों पर प्राय: राजा और प्रजा मभों के अत्याचार हुआ करते हैं। छोटा-छोटी मछलियां संख्या अधिक होने पर भी अपने में समूहशक्ति नहीं रखतीं, इस लिये बड़ी बड़ी मछलियां या मच्छ उन्हें खा जाते हैं । मधुमक्खियां (शहदकी मक्खियां) अपने में कुछ समूहशक्ति रखती हैं, इससे हर