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________________ बड़ा और छोटा दानी है । अत: दानके लक्षणानुसार सेठ हालचन्द उस द्रव्यके दानी नहीं कहे जासकते-दानद्रव्यके व्यवस्थापक हो सकते है । व्यव. स्थामें भी उनकी दृष्टि अपने व्यापारकी रही है और इसलिये उनके उस दानका कोई विशेष मूल्य नहीं है-वह दानके ठीक फलों. को नहीं फल सकता । पाँच लाखके दानी शेष तीन सेठ तो दानके व्यापारी मात्र हैं-दानकी कोई स्पिरिट, भावना और आत्मोपकार तथा परोपकारको लिये हुए अनुग्रह दृष्टि उनमें नहीं पाई जाती और इस लिये उनके दानको वास्तवमें दान कहना ही न चाहिये । सेठ ताराचन्दने तो ब्लैकमार्केट-द्वारा बहुतोंको सताकर कमाये हुए उस अन्यायव्यका दान करके उसका बदला भी अपने ऊपर चलनेवाले एक मुकदमेको टलानेके रूपमें चुका लिया है और सेठ विनोदीरामने बदलेमें 'रायबहादुर' तथा 'ऑनरेरी मजिस्टट' के पद प्राप्त कर लिये हैं अतः पारमार्थिकदृष्टि से उनके उस दानका कोई मूल्य नहीं है । प्रत्युत इसके,दसदस हजारके उन चारों दानियोंके दान दानकी ठीक स्पिरिट, भावना तथा स्व-परको अनुग्रहबुद्धि आदिको लिये हुए हैं और इस लिये दानके ठीक फलको फलनेवाले सम्यक दान कहे जानेके योग्य हैं। इसीसे मैं उनके दानी सेठ दयाचन्द, सेठ ज्ञानानन्द, ला० विवेकचन्द और बाबू सेवारामजीको पाँच-पाँच लाखके दानी उन चारों सेठों डालचन्द, ताराचन्द, रामानन्द और विनो. दीरामसे बड़े दानी समझता हूँ । इनके दानका फल हर हालतमें उन तथाकथित दानियोंके दान-फलसे बड़ा है और इस लिये उन दस-दस हजारके दानियोंमेंसे प्रत्येक दानी उन पाँच-पाँच लाखके दानियोंसे बड़ा दानी है। ___ यह सुनकर अध्यापक वीरभद्रजी अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बोले- 'परन्तु सेठ रामानन्दजीने तो दान देकर अपना
SR No.009236
Book TitleAnekant Ras Lahari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1950
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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