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धवला पुस्तक 3
87 आवलि आदि का प्रमाण आवलि असंखसमया संखेज्जावलिसमूहमुस्सासो। सत्तुस्सासो थोवो सत्तत्थोवा लवो एक्को।।33 ।।
असंख्यात समयों की एक आवली होती है। संख्यात आवलियों के समूह को एक उच्छ्वास कहते हैं। सात उच्छ्वासों का एक स्तोक होता है और सात स्तोकों का एक लव होता है।।33।।
अट्ठत्तीसद्धलवा णाली वे णालिया मुहुत्तो दु। एगसमएण हीणो भिण्णमुहुत्तो भवे सेसं।।34।।
साढ़े अड़तीस लवों की एक नाली होती है और दो नालियों का एक मुहूर्त होता है तथा मुहूर्त में से एक समय कम करने पर भिन्न मुहूर्त होता है और शेष अर्थात् दो, तीन आदि समय कम करने पर अन्तर्मुहूर्त होते हैं।।34।।
प्राण का लक्षण अड्ढस्स अणलसस्स य णिरुवहदस्स य जिणेहि जंतुस्स। उस्सासो णिस्सासो एगो पाणो त्ति आहिदो एसो।।35।।
जो सुखी है, आलस्य रहित है और रोगादि की चिन्ता से मुक्त है, ऐसे प्राणी के श्वासोच्छ्वास को एक प्राण कहते हैं, ऐसा जिनेन्द्रदेव ने कहा है।।35।।
मुहूर्त का प्रमाण तिण्णि सहस्सा सत्त य सयाणि तेहत्तरि च उस्सासा । एगो होदि मुहुत्तो सव्वेसि चेव मणुयाण।।36।।
सभी मनुष्यों के तीन हजार सात सौ तेहत्तर (3773) उच्छ्वासों का एक मुहूर्त होता है।।36।।