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धवला उद्धरण
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(और नये लब्ध का) भागहार से भाजित भाज्य-शेष ही अन्तर है, जो हानि और वृद्धि रूप होता है।।28।।
अवयणरासिगणिदो अवणयणेणणएण लद्धेण।
भजिदो हु भागहारो पक्खेवो होदि अवहारे।।29।। ___ भागहार को अपनयन राशि से गुणा कर देने पर और अपनयन राशि को लब्ध राशि में से घटाकर जो शेष रहे उसका भाग दे देने पर जो लब्ध आता है, वह भागहार में प्रक्षेप राशि होती है।।29।। पक्खोवरासिगुणिदो पक्खो वेणाहिएण लद्धे ण। भाजिओ हु भागहारो अवणेज्जो होइ अवहारे।।30।।
भागहार को प्रक्षेप राशि से गुणा कर देने पर और प्रक्षेप से अधिक लब्ध राशि का भाग देने पर जो लब्ध आता है, वह भागहार में अपनेय राशि होती है।।30।।
जे अहिया अवहारे रूवा तेहि गुणित्तु पुव्वफलं। अहियवहारेण हिए लद्धं पुव्वफलं ऊणं।।31।।
भागहार में जिनती अधिक संख्या होती है, उससे पूर्व फल को गुणित करके तथा अधिक अवहार से हृत अर्थात् भाजित करने पर जो आवे उसे पूर्वफल में से घटा देने पर नया लब्ध आता है ।।31।।
जे ऊणा अवहारे रूवा तेहिं गुणित्तु पुव्वफलं ऊणवहारेण हिए लद्धं पुव्वफलं अहियं ।।32।।
भागहार में जितनी न्यून संख्या होती है उससे पूर्वफल को गुणित करके तथा न्यून भागहार से हृत करने पर जो आव, उसे पूर्वफल में जोड़ देने पर नया लब्ध आता है।।32।।