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धवला उद्धरण
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छेदोपस्थापक संयत छेत्तूण य परियायं पोराणं जो ठवेइ अप्पाणं। पंचजमे धम्मे सो छदोवट्ठावओ जीवो।।188।।
जो पुरानी सावध व्यापाररूप पर्याय को छेदकर पाँच यमरूप धर्म में अपने को स्थापित करता है, वह जीव छेदोपस्थापक संयमी कहलाता है।।188॥
परिहारविशुद्धि संयत पंच-समिदो ति-गुत्तो परिहरइ सदा वि जो हु सावज्ज। पंच-जमेय-जमो वा परिहारो संजदो सो हु।।189।।
जो पाँच समिति और तीन गुप्तियों से युक्त होता हुआ सदा ही सावध योग का परिहार करता है तथा पांच यमरूप छेदोपस्थापना संयम को एक यमरूप सामायिक संयम को धारण करता है, वह परिहारविशुद्धि संयत कहलाता है।।189।।
सूक्ष्मसाम्पराय संयत अणुलोभं वेदंतो जवो उवसामगो व खवओ वा। सो सुहुम-सांपराओ जहक्खादेणूणओ किं पि।।190।।
चाहे उपशम श्रेणी का आरोहण करने वाला हो अथवा क्षपक श्रेणी का आरोहण करने वाला हो, परंतु जो जीव सूक्ष्म लोभ का अनुभव करता है, उसे सूक्ष्मसांपरायशुद्धि संयत कहते हैं। यह संयत यथाख्यात संयम से कुछ कम संयम को धारण करने वाला होता है।।190।।
यथाख्यात संयत उवसंते खीणे वा असुहे कम्मम्हि मोहणीयम्हि। छदुमत्थो व जिणो व जहखादो संजदो सो हु।।191।।