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धवला उद्धरण
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पुरु, महत्, उदार और उराल, ये शब्द एकार्थवाचक हैं। उदार में जो होता है उसे औदारिककाययोग कहते हैं।।160।।
औदारिक मिश्र काययोग विविह-गुण-इडिढ-जुत्तं वेउव्वियमहव विकिरिया चेव। जो तेण संपजोगो ओरालियमिस्सको जोगो।।161।।
औदारिक का अर्थ ऊपर कह आये हैं। वही शरीर जब तक पूर्ण नहीं होता है तब तक मिश्रकहलाता है और उसके द्वारा होने वाले संप्रयोग को औदारिकमिश्रकाययोग कहते हैं।।161।।
वैक्रियिक काययोग विविह-गुण-इडिढ-जुत्तं वेउव्वियमहव विकिरिया चेव। तिस्से भवं च णेयं वेउव्वियकायजोगो सो।।162।।
नाना प्रकार के गुण और ऋद्धियों से युक्त शरीर को वैगूर्विक अथवा वैक्रियक शरीर कहते हैं और इसके द्वारा होने वाले योग को वैगूर्विककाययोग कहते हैं।।162।।
वैक्रियिक मिश्र काययोग वेउव्वियमुत्तत्थं विजाण मिस्सं च अपरिपुण्णं च। जो तेण संपजोगो वेउव्वियमिस्सको जोगो।।163।।
वैगूर्विक का अर्थ पहले कह ही चुके हैं। वही शरीर जबतक पूर्ण नहीं होता है तब तक मिश्र कहलाता है और उसके द्वारा जो संप्रयोग होता है उसे वैगूर्विकमिश्रकाययोग कहते हैं।।163।।