________________
45
धवला पुस्तक 1 उसे एकेन्द्रिय स्थावर जीव कहा है।।135।।
द्वीन्द्रिय जीव का स्वरूप कुक्खिकिमि-सिपि-संखा गूंडूलारिट्ठ-अक्ख-खुल्ला य। तह य वराडय जीवा या बीइंदिया एदे।।136।।
कुक्षि-कृमि अर्थात् पेट के कीड़े, सीप, शंख, गण्डोला अर्थात् उदर में उत्पन्न होने वाली बड़ी कृमि, अरिष्ट नामक एक जीवविशेष अक्ष अर्थात् चन्दनक नामक जलचर जीव विशेष, क्षुल्लक अर्थात् छोटा शंख और कौड़ी आदि द्वीन्द्रिय जीव हैं।136।।
त्रीन्द्रिय जीव का स्वरूप कथु-पिपीलिक मंकुण-विच्छिअ-जूइंदगोव-गोम्ही य। उत्तिगणटियादी या तीइंदिया जीवा।।137।।
कुन्थु, पिपीलिका, खटमल, बिच्छू, जूं, इन्द्रगोप, कनखजूरा, गर्दभाकार कीट विशेष तथा नट्टियादिक कीट विशेष, ये सब त्रीन्द्रिय जीव हैं।137।।
चतुरिन्द्रिय जीव का स्वरूप मक्कडय-भमर-महुवर-मसय-पदंगा य सलह-गोमच्छी। मच्छी संदस कीडा या चउरिदिया जीवा।।138।।
मकड़ी, भौंरा, मधु-मक्खी, मच्छर, पतंग, शलभ, गोमक्खी, मक्खी और दंश से दशने वाले कीड़ों को चतुरिन्द्रिय जीव जानना चाहिए।138।।
पञ्चेन्द्रिय जीव का स्वरूप संसेदिम-सम्मुच्छिम-उब्भेदिम-ओववादिया चेव। रस-पोतंडजजरजा पंचिदिया जीवा।।139।।