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धवला उद्धरण वर्गणाओं को जो नियम से ग्रहण करता है उसको आहारक कहते हैं।।98।।
अनाहारक जीव विग्गह-गइमावण्ण केवलिणो समुहदा अजोगी य। सिद्धा य अणाहार सेसा आहारया जीवा।।99।।
विग्रह गति को प्राप्त होने वाले चारों गति के जीव, प्रतर और लोकपूरण समुद्घात को प्राप्त हुए सयोगि केवली और अयोगिकेवली तथा सिद्ध ये नियम से अनाहारक होते हैं। शेष जीवों को आहारक समझना चाहिये।।99।।
अनुयोग के एकार्थक नाम अणियोगो य णियोगो भास-विभासा य वट्टिया चेय। एदे अणिओअस्स दुणामा एयट्ठआ पंच।।100।।
अनुयोग, नियोग, भाषा, विभाषा और वर्तिका ये पाँच अनुयोग के एकार्थवाची नाम जानना चाहिये।।100।।
अनुयोग के एकार्थक नामों के दृष्टान्त सूई मुद्दा पडिहो संभवदल-वटिया चेय। अणियोग-णिरुत्तीए दिटुंता होंति पंचेय।।101।।
अनुयोग की निरुक्ति सूची, मुद्रा, प्रतिघ, संभवदल और वर्त्तिका ये पाँच दृष्टान्त होते हैं।।1010
विशेषार्थ- अनुयोग की निरुक्ति में जो पांच दृष्टान्त दिये हैं, वे लकड़ी आदि के काम को लक्ष्य में रखकर दिये गये प्रतीत होते हैं। जैसे लकड़ी से किसी वस्तु को तैयार करने के लिये पहले लकड़ी के निरुपयोगी भाग को निकालने के लिये उसके ऊपर एक रेखा में डोरा डाला