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धवला उद्धरण
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जिसके द्वारा जीव त्रिकाल विषयक समस्त द्रव्य, उनके गुण और उनकी अनेक प्रकार की पर्यायों को प्रत्यक्ष और परोक्षरूप से जाने, उसको ज्ञान कहते हैं।।91।।
संयम का स्वरूप
वय-समिइ-कसायाणं दंडाण तहिंदियाण पंचन्हं । धारण- पालण- णिग्गह- चाग- जया संजमो भणिओ | 192 अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह इन पाँच महाव्रतों का धारण करना, ईर्या, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेप और उत्सर्ग इन पाँच समितियों का पालना, क्रोध, मान, माया और लोभ, इन चार कषायों का निग्रह करना, मन, वचन और कायरूप तीन दण्डों का त्याग करना और पाँच इन्द्रियों का जय, इसको संयम कहते हैं।92।।
दर्शन का स्वरूप
जं सामण्णग्गहणं भावाणं णेव कट्टु आयारं । अविसेसिऊण अत्थे दंसणमिदि भण्णदे समए ॥ 93 || सामान्यविशेषात्मक बाह्य पदार्थों को अलग-अलग भेदरूप से ग्रहण नहीं करके, जो सामान्य ग्रहण अर्थात् स्वरूपमात्र का अवभासन होता है उसको परमागम में दर्शन कहा है 1 931
लेश्या का स्वरूप
लिंपादि अप्पीकरीरदि एदाए णियय - पुण्ण- पावं च । जीवो त्ति होइ लेस्सा लेस्सा-गुण- जाणय - क्खादां ।।94 ।।
जिसके द्वारा जीव पुण्य और पाप से अपने को लिप्त करता है, उनके अधीन करता है उसको लेश्या कहते हैं, ऐसा लेश्या के स्वरूप को जानने वाले गणधरदेव आदि ने कहा है । 194 ॥