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धवला उद्धरण
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जदं चरे जदं चिठे जदमासे जदं सए। जदं भुजेज्ज भासेज्ज एवं पावं ण बज्झई।।71।।
किस प्रकार चलना चाहिये? किस प्रकार खड़े रहना चाहिये? किस प्रकार बैठना चाहिये? किस प्रकार शयन करना चाहिये? किस प्रकार भोजन करना चाहिये? किस प्रकार संभाषण करना चाहिये, किस प्रकार पापकर्म नहीं बंधता है? (इस तरह गणधर के प्रश्नों के अनुसार) यत्न से चलना चाहिये, यत्न पूर्वक खड़े रहना चाहिये, यत्न से बैठना चाहिये, यत्न पूर्वक शयन करना चाहिये, यत्न पूर्वक भोजन करना चाहिये, यत्न से संभाषण करना चाहिये। इस प्रकार आचरण करने से पापकर्म का बंध नहीं होता है।।70-71।।
जीव के एक से दस तक के भेद एक्को चेय महप्पो सो दुवियप्पो णि-लक्खणो भणिओ। चदु-संकणा-जुत्तो पंचग्ग-गुण-प्पहाणो य।।72।। छक्कावक्कम-जुत्तो कमसो सो सत्त-भंगि-सब्भावो। अट्ठासवो णवट्ठो जीवो दस-ठाणियो भणियो।।73।।
महात्मा अर्थात् यह जीव द्रव्य निरन्तर चैतन्यरूप धर्म से उपयुक्त होने के कारण उसकी अपेक्षा एक ही है। ज्ञान और दर्शन के भेद से दो प्रकार का है। कर्मफल चेतना, कर्म चेतना और ज्ञान चेतना से लक्ष्यमाण होने के कारण तीन भेदरूप है। अथवा उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य के भेद से तीन भेदरूप है। चार गतियों में परिभ्रमण करने की अपेक्षा इसके चार भेद हैं। औदयिक आदि पाँच प्रधान गुणों से युक्त होने के कारण इसके पांच भेद हैं। भावान्तर में संक्रमण के समय पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊपर और नीचे इस तरह छह संक्रमण लक्षण अपक्रमों से युक्त होने की अपेक्षा छह प्रकार का है। अस्ति, नास्ति इत्यादि सात भंगों से युक्त होने की अपेक्षा सात प्रकार का है। ज्ञानावरणादि आठ प्रकार के कर्मों के आश्रव से