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धवला पुस्तक 1
23 नव केवल लब्धियां दाणे लाभे भोगे परिभोगे वीरिए य सम्मत्ते। णव केवल-लद्धीओ दंसण-णाणं चरित्ते य।।58।।
दान, लाभ, भोग, परिभोग, वीर्य, सम्यक्त्व, दर्शन, ज्ञान और चारित्र ये नव केवल लब्धियाँ हैं।।58।।
केवलज्ञान का फल खीणे दंसण-मोहे चरित्त-मोहे तहेव घाइ-तिए। सम्मत्त-विरिय-णाण खइयाइं होंति केवलिणो।।59।।
दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय के क्षय हो जाने पर तथा शेष तीन घातिया कर्मों के क्षय हो जाने पर केवली जिन के सम्यक्त्व, वीर्य और ज्ञान ये क्षायिक भाव प्रगट होते हैं।।59।।
भगवान् की दिव्यध्वनि उप्पणम्हि अणते णट्ठम्मि य छादुमत्थिए णाणे। णव-विह-पयत्थ-गब्मा दिव्वज्झुणी कहेइ सुत्तट्ठ।।60।।
क्षायोपशमिक ज्ञान के नष्ट हो जाने पर और अनन्तरूप केवलज्ञान के उत्पन्न हो जाने पर नौ प्रकार के पदार्थों से गर्भित दिव्यध्वनि सूत्रार्थ का प्रतिपादन करती है। अर्थात् केवलज्ञान हो जाने पर भगवान् की दिव्यध्वनि खिरती है।।60।।
भगवान् महावीर के प्रथम गणधर गोत्तेण गोदमो विप्पो चाउव्वे य-सडंगवि। णामेण इंदभूदि त्ति सीलवं बम्हणुत्तमो।।61।।
गौतम गौत्री, विप्र वर्णी, चारों वेद और षडंगविद्या का पारगामी, शीलवान् और ब्राह्मणों में श्रेष्ठ ऐसा वर्द्धमान स्वामी का प्रथम गणधर