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धवला उद्धरण
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जन्म और मरण से रहित ऐसे सम्भव जिनेन्द्र की वन्दना करके प्रयत्नपूर्वक आनुपूर्वी के अनुसार दीर्घ और ह्रस्व अनुयोगद्वार की प्ररूपणा करता हूँ।।1।। तिहुवणसुरिंदवंदियमहिवंदिय तिहुवणाहिवं सुमदि। भवधारणीयममलं अणुयोगं वण्णइस्सामो।।1।।
तीन लोक के देवों व इंद्रों से वन्दित ऐसे तीन लोक के स्वामी सुमति जिनेन्द्र की वन्दना करके निर्मल भवधारणीय नामक अनुयोगद्वार का वर्णन करते हैं ।।1।।
पउमदलगब्भउरं देवं पउमप्पहं णमंसित्ता। पोग्गलअत्ताणुओअं समासदो वण्णइस्सामो।।1।।
पद्म पत्र के गर्भ के समान और वर्ण वाले पद्मप्रभ जिनेन्द्र को नमस्कार करके पुद्गलात्त अनुयोगद्वार का संक्षेप से वर्णन करते हैं।।1।।
णमिऊण सुपासजिणं तियसेसरवंदियं सयलणाणिं। वोच्छं समासदो हं णिधत्तमणिधत्तमणुयोग।।1।। ___ त्रिदशेश्वर अर्थात् इन्द्रों से वन्दित और पूर्णज्ञानी ऐसे सुपार्श्व जिन को नमस्कार करके मैं संक्षेप में निधत्तमनिधत्त अनुयोगद्वार का कथन करता हूँ।।1।। हंसमिव धवलममलं जम्मण-जर-मरणवज्जियं चंदं। वोच्छामि भावपणओ णिकाचिदणिकाचिदणुयोग।।1।।
हंस के समान धवल, निर्मल तथा जन्म, जरा और मरण से रहित ऐसे चन्द्रप्रभ जिनको भावपूर्ण प्रणाम करके मैं निकाचित-अनिकाचित अनुयोगद्वार की प्ररूपणा करता हूँ।।1।।
णमिऊण पुप्फयंत सुरहियधवलिद्वपुप्फअचियच्चलणं। कम्मट्ठिदिअणुयोगं वोच्छामि समासदो पयत्तेण।1।।