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धवला पुस्तक 16
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पद्म लेश्या का लक्षण
चाई भो चोखो उज्जुवकम्मो य खमइ बहुअं पि । साहु-गुरुपूजणरओ पम्माए परिणओ जीवो।।8।। पद्म लेश्या में परिणत जीव त्यागी, भद्र, चोखा (पवित्र), ऋजुकर्मा (निष्कपट), भारी अपराध को भी क्षमा करने वाला तथा साधुपूजा व गुरुपूजा में तत्पर रहता है ॥8॥
शुक्ल लेश्या का लक्षण
णय कुणइ पक्खवायं ण वि य णिदाणं समो य सव्वेसु । त्थि य राग-द्दोसो गेहो वि य सुक्कलेस्साए ।।9।।
शुक्ल लेश्या के होने पर जीव न पक्षपात करता है और न निदान भी करता है। वह सब जीवों में समान रहकर राग, द्वेष व स्नेह से रहित होता है।।9।।
अहिणंदणमहिवंदिय अहिणंदियति हुवणं सुहत्तीए । लेस्सपरिणामसण्णियमणियोगं वण्णइस्सामो ।।1।। तीनों लोकों को आनन्दित करने वाले अभिनन्दन जिनेन्द्र की अतिशय भक्तिपूर्वक वंदना करके 'लेश्यापरिणाम' संज्ञा वाले अनुयोगद्वार का वर्णन करते हैं।। 1 ।।
अजियं जियसयलविभुं परमं जय-जीयबंधवं णमिउं । सादासादगुणयोगं समासदो वण्णइस्सामा ।।1।।
जिन्होंने समस्त विभुओं पर विजय प्राप्त कर ली है और जो जगत् के जीवों के हितैषी हैं, उन उत्कृष्ट अजित जिनेन्द्र को नमस्कार करके संक्षेप में सातासाता अनुयोगद्वार का वर्णन करते हैं ।।1।।
संभवमरणविवज्जियमहिवंदिय सं वं पयत्तेण । दीह - रहस्णुयोगं वोच्छामि जहाणुपुव्वीए । । 1 ॥